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लाभ के पीछे दौड़ रहे
छेड़-छेड़ की आदत बुरी कौन समझाए किसको
सब अपने हित में लगे रहें कौन हटाए किसको
पर्वत रौंद दिये, वृक्ष खो गये, पशु-पक्षी रहे नहीं
लाभ के पीछे दौड़ रहे, कौन रोक सका किसको
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झूठे मुखौटे मत चढ़ा
झूठे मुखौटे मत चढ़ा।
असली चेहरा दुनिया को दिखा।
मन के आक्रोश पर आवरण मत रख।
जो मन में है
उसे निडर भाव से प्रकट कर।
यहां डर से काम नहीं चलता।
वैसे भी हंसी चेहरे,
और चेहरे पर हंसी,
लोग ज़्यादा नहीं सह पाते।
इससे पहले
कि कोई उतारे तुम्हारा मुखौटा,
अपनी वास्तविकता में जीओ,
अपनी अच्छाईयों-बुराईयों को
समभाव से समझकर
जीवन का रस पीओे।
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भाई के नाम एक प्यार भरी पाती
प्रिय भाई,
कैसे हैं आप।
हर वर्ष तुम्हें मेरे दो पत्र मिलते हैं और मैं एक झूठी आशा में रहती हूं कि उत्तर आयेगा। तुम्हें अपना बनाने की कोशिश में तो आजीवन रहूंगी भाई।
भाई, बरसों हो गये, हर राखी, भैया-दूज सूनी निकल जाती है। क्यों आज भाई यह समझने लगे हैं कि बहनें बस स्वार्थवश ही भाईयों को स्मरण करती हैं? मम्मी-पापा के रहते शायद तुम्हारी विवशता थी मुझे बुलाना। तुम्हारी उपेक्षा तब भी मैं समझती थी किन्तु सोचती थी कि तुम्हारा स्वभाव ही ऐसा है तो कोई बात नहीं। किन्तु जब भी ये पर्व आते हैं, भाई-बहनों को हंसते-खिलखिलाते देखती हूं तो बहुत कुछ टूटता है मेरे भीतर।
जानती हूं कि पारिवारिक स्थितियों के कारण परिवार का बोझ तुम्हारे कंधों पर बहुत जल्दी आ गया था और चार-चार बहनें थीं तुम्हारी। तुम्हारे मन में यह गहरे से बैठ गया था कि चारों बहनें तुम पर बोझ हैं और शायद हमारे कारण तुम जीवन में कभी कुछ न कर पाओ। हर परिचित-अपरिचित तुम्हें यही कहता था बेचारा विनोद, बूढ़े माता-पिता और चार-चार बहनें। बेचारा। किन्तु हमने तो तुम्हें कभी भी बेचारा नहीं बनने दिया। हम सब बहनों ने सदैव तुम्हारा हाथ बंटाया और अपना कर्तव्य भी निभाया। हम चारों ही आत्मनिर्भर हुईं और अपने-अपने रास्ते निकल गईं। किन्तु बचपन से बंधी गांठ कभी भी तुम्हारे मन से निकल ही नहीं पाई। केवल यह सोचकर कि बहनें बोझ होती हैं तुमने हम सब बहनों से सम्बन्ध ही तोड़ लिये। हमने तो कभी कोई मांग नहीं की। तुम भाई-बहन के सरल-सहज रिश्ते को कभी समझ ही नहीं पाये।
कितने वर्ष हो गये, हर वर्ष पत्र लिखती हूं यह जानते हुए भी कि उत्तर नहीं आयेगा किन्तु मेरा मन नहीं मानता। शायद कभी तुम समझ सको। एक निरर्थक-सी आस लिए जी रही हूं और सदैव इस आस में रहूंगी। मैं जानती हूं कि यह पत्र तुम्हारे लिए निरर्थक है किन्तु अपने मन को कैसे समझाउं।
तुम सदैव स्वस्थ रहो, सानन्द रहो, यही कामना है मेरी।
तुम्हारी बहन
कविता सूद
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छोटे-छोटे घर हैं छोटे-छोटे सपने
छोटे-छोटे घर हैं, छोटे-छोटे सपने
घर के भीतर रहते हैं यहां सब अपने
न ताला-चाबी, न द्वार, न चोर यहां
फूलों से सज्जित, ये घर सुन्दर कितने
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पंखों की उड़ान परख
पंखों की उड़ान परख
गगन परख, धरा निरख ।
तुझको उड़ना सिखलाती हूं,
आशाओं के गगन से
मिलवाना चाहती हूं,
साहस देती हूं,
राहें दिखलाती हूं।
जीवन में रोशनी
रंगीनियां दिखलाती हूं।
पर याद रहे,
किसी दिन
अनायास ही
एक उछाल देकर
हट जाउंगी
तेरी राहों से।
फिर अपनी राहें
आप तलाशना,
जीवन भर की उड़ान के लिए।
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सिल्ली बर्फ़ सी
मन में भावों की सिल्ली बर्फ़ सी
तुम्हारे नेह से पिघल रही तरल-सी
चलो आज मिल बैठें दो बात करें
नयनों से झरे आंसू रिश्तों की छुअन-सी
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वेदनाओं की गांठें खोल
न बांध ज़िन्दगी में पीड़ा की गठरियों को
कुछ हंस-बोल ले, खोल दे गठरियों को
वेदनाओं की गांठें खोल, कहीं दूर फेंक
तोड़ फेंक झूठे रिश्तों की गठरियों को
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पर्यायवाची शब्दों में हेर-फ़ेर
इधर बड़ा हेर-फ़ेर
होने लगा है
पर्यायवाची शब्दों में।
लिखने में शब्द
अब
उलझने लगे हैं।
लिखा तो मैंने
अभिमान, गर्व था,
किन्तु तुम उसे
मेरा गुरूर समझ बैठे।
अपने अच्छे कर्मों को लेकर
अक्सर
हम चिन्तित रहते हैं।
प्रदर्शन तो नहीं,
किन्तु कभी तो कह बैठते हैं।
फिर इसे
आप मेरा गुरूर समझें
या कोई पर्यायवाची शब्द।
कभी-कभी
अपनी योग्यताएँ
बतानी पड़ती हैं
समझानी पड़ती हैं
क्योंकि
इस समाज को
बुराईयों का काला चिट्ठा तो
पूरा स्मरण रहता है
बस अच्छाईयाँ
ही नहीं दिखतीं।
इसलिए
जताना पड़ता है,
फिर तुम उसे
मेरा गुरूर समझो
या कुछ और।
नहीं तो ये दुनिया तुम्हें
मूर्खानन्द ही समझती रहेगी।
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तेरा विश्वास
तेरा विश्वास
जब-जब किया
तब-तब ज़िन्दगी ने
पाठ पढ़ाया।
उस ईश्वर ने कहा
तुझे भी तो दिया था
एक दिमाग़
उसमें कचरा नहीं था,
बहुत कुछ था।
किन्तु
जब प्रयोग नहीं किया
तो वह
कचरा ही बन गया
अब दोष मुझे देते हो
कि
ऐसा साथ क्यों दिया।
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जीवन की धूप में
सुना है
किसी वंशी की धुन पर
सारा गोकुल
मुग्ध हुआ करता था।
ग्वाल-बाल, राधा-गोपियां
नृत्य-मग्न हुआ करते थे।
वे हवाओं से बहकने वाले
वंशी के सुर
आज लाठी पर अटक गये,
जीवन की धूप में
स्वर बहक गये
नृत्य-संगीत की गति
ठहर-ठहर-सी गई,
खिलखिलाती गति
कुछ रूकी-सी
मुस्कानों में बदल गई
दूर कहीं भविष्य
देखती हैं आंखें
सुना है
कुछ अच्छे दिन आने वाले हैं
क्यों इस आस में
बहकती हैं आंखें