अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
गुपचुप, छुपछुपकर बैठे दो पंछी
नेह-नीर में भीग रहे दो पंछी
घन बरसे, मन हरषे, देख रहे
साथ-साथ बैठे खुश हैं दो पंछी