बचपन के खेल

विष-अमृत

बचपन में खेले गये अनेक खेल आज भी हमें याद आते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि यह सारे खेल प्रायः खुले स्थानों पर, सामूहिक एवं परस्पर सम्भाव बनाये रखने वाले होते थे।

ऐसा ही एक खेल हम खेलते थे ‘‘विष-अमृत’’। इस खेल को विभिन्न आयु-वर्ग के बच्चे साथ खेल लेते थे। यह खेल पकड़म-पकड़ाई का ही एक रूप है।

इस खेल में एक बच्चा विष देने वाला बनता है और शेष सब उससे बचते भागते हैं। जैसे ही विष देने वाला बच्चा किसी को छूकर विष बोल देता है पकड़े गये बच्चे को उसी स्थान पर बिना हिले बैठ जाना पड़ता है जब तक कि कोई दूसरा खिलाड़ी आकर उसे छूकर  अमृत कह कर  जीवित  नहीं कर देता।

इस तरह जब तक सारे खिलाड़ियों को विष नहीं दे दिया जाता खेल चलता रहता है। और जिसे सबसे पहले विष मिला होता है वह अब पकड़ने वाला बन जाता है।

बचपन के खेल -2

ऊँच-नीच

 संध्या समय हमारा बाहर खुले मैदान में ऐसे ही खेलों में बीतता था जिसमें एक साथ बहुत से बच्चे साथ मिलकर खेल लेते थे।

ऊँच-नीच में खेलने के लिए ऐसा स्थान चुना जाता था जहाँ ऊँचाई-निचाई हो, जैसे सीढ़ियाँ आदि। एक बच्चा पकड़़ने वाला, जिसे हम लोग चोर ही कहा करते थे, बन जाता है उससे सब एक स्वर में गाकर पूछते हैं ‘‘ ऊँच मांगी नीच’’। चोर यदि कहता है कि ‘‘ऊँच’’ तो सब बच्चे उससे बचने के लिए नीचे आ जाते हैं। चोर के दूर जाते ही और बच्चे ऊँचाई वाले स्थान पर जाकर बैठकर उसे चिढ़ाते हुए कहते हैं ‘‘हम तुम्हारी ऊँच पर रोटियाँ बनायेंगे’’। जब तक चोर पहुँचता है वे भाग जाते हैं। ऐसे करते-करते जो बच्चा पकड़ा जाता है वह अगला चोर बनता था।

इन खेलों में कब समय बीत जाता था पता ही नहीं लगता था। जब तक सब बच्चों की माँएं कान से पकड़कर खींचकर नहीं ले जाती थीं, ऐसे खेल कभी समाप्त ही नहीं होते थे। यही सब हमारी एक्टीविटी हुआ करती थीं, निःशुल्क एवं स्वस्थ रखने वाली।