‘गर कांटे न होते

इतना न याद करते गुलाब को,  गर कांटे न होते

न सुहाती मुहब्बत गर बिछड़ने के अफ़साने न होते

गर आंसू न होते तो मुस्कुराहट की बात कौन करना

कौन स्मरण करता यहां गर भूलने के बहाने न होते