ज़िन्दगी के रास्ते

यह निर्विवाद सत्य है

कि ज़िन्दगी

बने-बनाये रास्तों पर नहीं चलती।

कितनी कोशिश करते हैं हम

जीवन में

सीधी राहों पर चलने की।

निश्चित करते हैं कुछ लक्ष्य

निर्धारित करते हैं राहें

पर परख नहीं पाते

जीवन की चालें

और अपनी चाहतें।

ज़िन्दगी

एक बहकी हुई

नदी-सी लगती है,

तटों से टकराती

कभी झूमती, कभी गाती।

राहें बदलती

नवीन राहें बनाती।

किन्तु

बार-बार बदलती हैं राहें

बार-बार बदलती हैं चाहतें

बस,

शायद यही अटूट सत्य है।