हर घड़ी सुख बाँटती है ज़िंदगी

शून्य से सौ तक निरंतर दौड़ती है ज़िंदगी !

और आगे क्या , यही बस खोजती है ज़िंदगी !

चाह में कुछ और मिलने की सभी क्यों जी रहे –

 देखिये तो हर घड़ी सुख बाँटती है ज़िंदगी !