हमारा हिन्दी दिवस

 

वर्ष 1975 में पहली बार किसी राज्य स्तरीय  कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया और उसके बाद मेरी प्रतिक्रिया ।

उस समय कवि सम्मेलन में कवियों को सौ रूपये मानदेय मिलता था

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हमारा हिन्दी दिवस।

14 सितम्बर हमारा हिन्दी दिवस।

भाषण माला हमारा हिन्दी दिवस।

कवि गोष्ठी हमारा हिन्दी दिवस।

कवि कवि, कवि श्रोता, श्रोता कवि

सारे कवि सारे श्रोता , बस कवि कवि,

सारे श्रोता सारे कवि हमारा हिन्दी दिवस।

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कुछ नेता कुछ नेता वेत,्ता

कुछ मंत्री, मंत्री के साथ संतरी

हल्ला गुल्ला, तालियां हार मालाएं, उद्घाटन,

फ़ोटो, कैमरा, रेडियो, टी.वी. हमारा हिन्दी दिवस।

 

वादा है सौ रूपये का, कुछ पुरस्कारों, 

मान चिन्हों का, सम्मान पदकों का। मिलेंगे।

कविता, भाषण, साहित्य, सम्मान भाड़ में।

सौ रूपया है, किराया, नई जगह घूमना।

रसद पानी, वाह वाही,

कुछ उखड़ी बिखरी कुछ टूटी फूटी हिन्दी।

हमारा हिन्दी दिवस सम्पन्न।

फिर वर्ष भर का अवकाश।

न हिन्दी न दिवस। न गोष्ठी न रूपये।

वर्ष भर की बेकारी।

मुझे लगता है

हमारा हिन्दी दिवस

सरकार का एक दत्तक पुत्र है

14 सितम्बर 1949 को गोद लिया

और उसी दिन उसकी हत्या कर दी।

अब सरकार हर 14 सितम्बर को

उसकी पुण्य तिथि धूमधाम से मनाती है

उनके नाम पर वर्ष भर से रूके

अपने कई काम पूरे करवाती है

वर्ष भर बाद

कुछ दक्षिणा मिल पाती है।

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आह ! एक वर्ष !

फिर हिन्दी दिवस ! फिर सौ रूपये

फिर एक वर्ष ! फिर हिन्दी दिवस !

फिर ! फिर ! शायद अब तक

हिन्दी का रेट कुछ बढ़ गया हो।

अच्छा ! अगले वर्ष फिर मिलेंगे

हर वर्ष मिलेंगे।

हम हिन्दी के चौधरी हैं

हिन्दी सिर्फ हमारी बपौती है।