हम श्मशान बनने लगते हैं

इंसान जब  मर जाता है,

शव कहलाता है।

जिंदा बहुत शोर करता था,

मरकर चुप हो जाता है।

किन्तु जब मर कर बोलता है,

तब प्रेत कहलाता है।

.

श्मशान में टूटती चुप्पी

बहुत भयंकर होती है।

प्रेतात्माएं होती हैं या नहीं,

मुझे नहीं पता,

किन्तु जब

जीवित और मृत

के सम्बन्ध टूटते हैं,

तब सन्नाटा भी टूटता है।

कुछ चीखें

दूर तक सुनाई देती हैं

और कुछ

भीतर ही भीतर घुटती हैं।

आग बाहर भी जलती है

और भीतर भी।

इंसान है, शव है या प्रेतात्मा,

नहीं समझ आता,

जब रात-आधी-रात

चीत्कार सुनाई देती है,

सूर्यास्त के बाद

लाशें धधकती हैं,

श्मशान से उठती लपटें,

शहरों को रौंद रही हैं,

सड़कों पर घूम रही हैं,

बेखौफ़।

हम सिलेंडर, दवाईयां,

बैड और अस्पताल का पता लिए,

उनके पीछे-पीछे घूम रहे हैं

और लौटकर पंहुच जाते हैं

फिर श्मशान घाट।

.

फिर चुपचाप

गणना करने लगते हैं, भावहीन,

आंकड़ों में उलझे,

श्मशान बनने लगते हैं।