स्वाधीनता हमारे लिए स्वच्छन्दता बन गई

एक स्वाधीनता हमने

अंग्रेज़ो से पाई थी,

उसका रंग लाल था।

पढ़ते हैं कहानियों में,

सुनते हैं गीतों में,

वीरों की कथाएं, शौर्य की गाथाएं।

किसी समूह,

जाति, धर्म से नहीं जुड़े थे,

बेनाम थे वे सब।

बस एक नाम जानते थे

एक आस पालते थे,

आज़ादी आज़ादी और आज़ादी।

तिरंगे के मान के साथ

स्वाधीनता पाई हमने

गौरवशाली हुआ यह देश।

मुक्ति मिली हमें वर्षों की

पराधीनता से।

हम इतने अधीर थे

मानों किसी अबोध बालक के हाथ

जिन्न लग गया हो।

समझ ही नहीं पाये,

कब स्वाधीनता हमारे लिए

स्वच्छन्दता बन गई।

पहले देश टूटा था,

अब सोच बिखरने लगी।

स्वतन्त्रता, आज़ादी और

स्वाधीनता के अर्थ बदल गये।

मुक्ति और स्वायत्तता की कामना लिए

कुछ शब्दों के चक्रव्यूह में फ़ंसे हम,

नवीन अर्थ मढ़ रहे हैं।

भेड़-चाल चल रहे हैं।

आधी-अधूरी जानकारियों के साथ

रोज़ मर रहे हैं और मार रहे हैं।

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वे, जो हर युग में आते थे

वेश और भेष बदल कर,

लगता है वे भी

हार मान बैठ हैं।