स्वप्न हों साकार

तुम बरसो, मैं थाम लूं मेह की रफ्तार

न कहीं सूखा हो न धरती बहे धार धार

नदी, कूप, सर,निर्झर सब हों अमृतमय

शस्यश्यामला धरा पर स्वप्न  हों साकार