सौन्दर्य निरख मन हरषा

 पलभर में धूप निकलती, कभी बादल बरसें कण-कण।

धरा देखो महक रही, कलियां फूल बनीं, बहक रहा मन।

पल्लव झूम रहे, पंछी डाली-डाली घूम रहे, मन हरषा,

सौन्दर्य निरख, मन भी बहका, सब कहें इसे पागलपन।a