सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।

हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं

दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं

पर तवा गर्म नहीं होता।

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।

मां ने कहा, बाप ने कहा,

पति ने कहा, सास ने कहा।

सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।

न आग न लपट, न धुंआ न चटक

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी

मां ने कहा, बाप ने कहा,

पति ने कहा, समाज ने कहा।

सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।

हाथ भी बंधे हैं, पैर भी बंधे हैं,

मुंह भी सिला है, कान भी कटे हैं।

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।

मां ने कहा, बाप ने कहा,

पति ने कहा, समाज ने कहा।

बोलना मना है, सुनना मना है,

देखना मना है, सोचना मना है,

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।

मां ने कहा, बाप ने कहा,

पति ने कहा, सास ने कहा।

भाव भी मिटाती हूं, आस भी लुटाती हूं

सपने भी बुझाती हूं, आब भी गंवाती हूं

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी

आना मना है, जाना मना है,

रोना मना है, हंसना मना है।

मां ने कहा, बाप ने कहा,

पति ने कहा, सास ने कहा।

सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।

हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं

दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं

पर तवा गर्म नहीं होता।……………