सुविधानुसार रीतियों का पालन कर रहे हैं

पढ़ा है ग्रंथों में मैंने

कृष्ण ने

गोकुलवासियों की रक्षा के लिए

अतिवृष्टि से उनकी सुरक्षा के लिए

गोवर्धन को

एक अंगुली पर उठाकर

प्रलय से बचाया था।

किसे, क्यों हराया था,

नहीं सोचेंगे हम।

विचारणीय यह

कि गोवर्धन-पूजा

प्रतीक थी

प्रकृति की सुरक्षा की,

अन्न-जल-प्राणी के महत्व की,

पर्यावरण की रक्षा की।

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आज पर्वत दरक रहे हैं,

चिन्ता नहीं करते हम।

लेकिन

गोबर के पर्वत को

56 अन्नकूट का भोग लगाकर

प्रसन्न कर रहे हैं।

पशु-पक्षी भूख से मर रहे हैं।

अति-वृष्टि, अल्प-वृष्टि रुकती नहीं।

नदियां प्रदूषण का भंडार बन रही हैं।

संरक्षण नहीं कर पाते हम

बस सुविधानुसार

रीतियों का पालन कर रहे हैं।