सुनो, एकान्त का मधुर-मनोहर स्वर

सुनो,

एकान्त का

मधुर-मनोहर स्वर।

बस अनुभव करो

अन्तर्मन से उठती

शून्य की ध्वनियां,

आनन्द देता है

यह एकाकीपन,

शान्त, मनोहर।

कितने प्रयास से

बिछी यह श्वेत-धवल

स्वर लहरी

मानों दूर कहीं

किसी 

जलतरंग की ध्वनियां

प्रतिध्वनित हो रही हों

उन स्वर-लहरियों से

आनन्दित

झुक जाते हैं विशाल वृक्ष

तृण भारमुक्त खड़े दिखते हैं

ऋतु बांध देती है हमें

जताती है

ज़रा मेरे साथ भी चला करो

सदैव मनमानी न करो

आओ, बैठो दो पल

बस मेरे साथ

बस मेरे साथ।