सिक्के सारे खन-खन गिरते

कहते हैं जी,

हाथ की है मैल रूपया,

थोड़ी मुझको देना भई।

मुट्ठी से रिसता है धन,

गुल्लक मेरी टूट गई।

सिक्के सारे खन-खन गिरते

किसने लूटे पता नहीं।

नोट निकालो नोट निकालो

सुनते-सुनते

नींद हमारी टूट गई।

छल है, मोह-माया है,

चाह नहीं है

कहने की ही बातें हैं।

मेरा पैसा मुझसे छीनें,

ये कैसी सरकार है भैया।

टैक्सों के नये नाम

समझ न आयें

कोई हमको समझाए भैया

किसकी जेबें भर गईं,

किसकी कट गईं,

कोई कैसे जाने भैया।

हाल देख-देखकर सबका

अपनी हो गई ता-ता थैया।

नोटों की गद्दी पर बैठे,

उठने की है चाह नहीं,

मोह-माया सब छूट गई,

बस वैरागी होने को

मन करता है भैया।

आगे-आगे हम हैं

पीछे-पीछे है सरकार,

बचने का है कौन उपाय

कोई हमको सुझाओ  दैया।