समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून

जि़न्‍दगी बिना जोड़-जोड़ के कहां चली है

करता सब उपर वाला हमारी कहां चली है

समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून

इसी मैं-मैं के चक्‍कर में सबकी अड़ी पड़ी है