सच बोलने की आदत है बुरी

सच बोलने की आदत है बुरी

इसीलिए

सभी लोग रहने लगे हैं किनारे

पीठ पर वार करना मुझे भाता नहीं

चुप रहना मुझे आता नहीं

भाती नहीं मुझे झूठी मिठास

मन मसोस कर मैं जीती नहीं

खरी-खरी कहने से मैं रूकती नहीं

इसीलिए

सभी लोग रहने लगे हैं किनारे

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हालात क्‍या बदले,

वक्‍त ने क्‍या चोट दी,

सब लोग रहने लगे हैं किनारे

काश !

कोई तो हमारी डूबती कश्‍ती में

सवार होता संग हमारे

कहीं तो हम नाव खेते

किसी के सहारे।

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किन्‍तु हालात यूं बदले

न पता लगा, कब टूटे किनारे

सब लोग जो बैठे थे किनारे

डूबते-उतरते वे अब ढूंढने लगे सहारे

तैर कर निकल आये हम तो किनारे

उसी कश्‍ती को थाम ,

अब वे भी ढूंढने में लगे हैं किनारे