संधान करें अपने भीतर के शत्रुओं का

ऐसा क्यों होता है

कि जब भी कोई गम्भीर घटना

घटती है कहीं,

देश आहत होता है,

तब हमारे भीतर

देशभक्ति की लहर

हिलोरें  लेने लगती है,

याद आने लगते हैं

हमें वीर सैनिक

उनका बलिदान

देश के प्रति उनकी जीवनाहुति।

हुंकार भरने लगते हैं हम

देश के शत्रुओं के विरूद्ध,

बलिदान, आहुति, वीरता

शहीद, खून, माटी, भारत माता

जैसे शब्द हमारे भीतर खंगालने लगते हैं

पर बस कुछ ही दिन।

दूध की तरह

उबाल उठता है हमारे भीतर

फिर हम कुछ नया ढूंढने लगते हैं।

और मैं

जब भी लिखना चाहती हूं

कुछ ऐसा, 

नमन करना चाहती हूं

देश के वीरों को

बवंडर उठ खड़ा होता है

मेरे चारों ओर

आवाज़ें गूंजती हैं,

पूछती हैं मुझसे

तूने क्या किया आज तक

देश हित में ।

वे देश की सीमाओं पर

अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं

और तुम यहां मुंह ढककर सो रहे हो।

तुम संधान करो उन शत्रुओं का

जो तुम्हारे भीतर हैं।

शत्रु और भी हैं देश के

जिन्हें पाल-पोस रहे हैं हम

अपने ही भीतर।

झूठ, अन्याय के विरूद्ध

एक छोटी-सी आवाज़ उठाने से डरते हैं हम

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी अनैतिकता

के विरूद्ध बोलने का

हमें अभ्यास नहीं।

काश ! हम अपने भीतर बसे

इन शत्रुओं का दमन कर लें

फिर कोई बाहरी शत्रु

इस देश की ओर

आंख उठाकर नहीं देख पायेगा।