शिलालेख हैं मेरे भीतर

शिलालेख हैं मेरे भीतर कल की बीती बातों के

अपने ही जब चोट करें तब नासूर बने हैं घातों के

इन रिसते घावों की गांठे बनती हैं न खुलने वाली

अन्तिम यात्रा तक ढोते हैं हम खण्डहर इन आघातों के