शब्दों की झोली खाली पाती हूं

जब भावों का ज्वार उमड़ता है, तब सोच-समझ उड़ जाती है

लिखने बैठें तो अपने ही मन की बात कहां समझ में आती है

कलम को क्यों दोष दूं, क्यों स्याही फैली, सूखी या मिट गई

भावों को किन शब्दों में ढालूं, शब्दों की झोली खाली पाती हूं