विरोध के स्वर

आंख मूंद कर बैठे हैं, न सुनते हैं न गुनते हैं

सुनी-सुनाई बातों का ही पिष्ट पेषण करते हैं

दूर बैठै, नहीं जानते, कहां क्या घटा, क्यों घटा

विरोध के स्वर को आज हम देश-द्रोह मान बैठे हैं