लौट गये वे भटके-भटके

जिनको समझी थी मैं भूले-भटके, वे सब निकले हटके-हटके
ज्ञान-ध्यान वे बांट रहे थे, हम अज्ञानी रह गये अटके-अटके
पोथी बांची, कथा सुनाई, फिर दान-धर्म की बात समझाई
हमने भी अपनी कविता कह डाली, लौट गये वे भटके-भटके