रे मन अपने भीतर झांक

सागर से गहरे हैं मन के भाव, किसने पाई थाह

सीपी में मोती से हैं मन के भाव, किसने पाई थाह

औरों के चिन्तन में डूबा है रे मन अपने भीतर झांक

जीवन लभ्य हो जायेगा जब पा लेगा अपने मन की थाह