रिश्तों के तो माने हैं

पेड़ सूखे तो क्या

सावन रूठे तो क्या

पत्ते झरे तो क्या

कांटे चुभे तो क्या।

हम भूले नहीं

अपना बसेरा।

लौट लौट कर आयेंगे

बसेरा यहीं बसायेंगे

तुम्हें न छोड़कर जायेंगे।

दु:ख सुख तो आने जाने हैं।

पर रिश्तों के तो माने हैं।

जब तक हैं

तब तक तो

इन्हें निभायेंगे।

बसेरा यहीं बसायेंगे।