युग प्रदर्शन का है

मैं आज तक

समझ नहीं पाई

कि मोर शहर में

क्यों नहीं नाचते।

जंगल में नाचते हैं

जहां कोई देखता नहीं।

 

सुना है

मोरनी को लुभाने के लिए

नृत्य करते हो तुम।

बादल-वर्षा की आहट से

इंसान का मन-मयूर नाच उठता है,

तो तुम्हारी तो बात ही क्या।

तुम्हारी पायल से मुग्ध यह संसार

वन-वन ढूंढता है तुम्हें।

अद्भुत सौन्दर्य का रूप हो तुम।

रंगों की निराली छटा

मनमोहक रूप हो तुम।

पर कहां

जंगल में छिपे बैठे तुम।

कृष्ण अपने मुकुट में

पंख तुम्हारा सजाये बैठे हैं,

और तुम वहां वन में

अपना सौन्दर्य छिपाये बैठे हो।

 

युग प्रदर्शन का है,

दिखावे और चढ़ावे का है,

काक और उलूव

मंचों पर कूकते हैं यहां,

गर्धभ और सियार

शहरों में घूमते हैं यहां।

मांग बड़ी है।

एक बार तो आओ,

एक सिंहासन तुम्हें भी

दिलवा देंगे।

राष्ट््र पक्षी तो हो

दो-चार पद और दिलवा देंगे।