यह ज़िन्दगी है

यह ज़िन्दगी है,

भीड़ है, रेल-पेल है ।

जाने-अनजाने लोगों के बीच ,

बीतता सफ़र है ।

कभी अपने पराये-से,

और कभी पराये

अपने-से हो जाते हैं।

दुख-सुख के ठहराव ,

कभी छोटे, कभी बड़े पड़ाव,

कभी धूप कभी बरसात ।

बोझे-सी लदी जि़न्‍दगी, 

कभी जगह बन पाती है

कभी नहीं।

कभी छूटता सामान

कभी खुलती गठरियां ।

अन्‍तहीन पटरियों से सपनों का जाल ।

दूर कहीं दूर पटरियों पर

बेटिकट दौड़ती-सी ज़िन्दगी ।

मिल गई जगह तो ठीक,

नहीं तो खड़े-खड़े ही,

बीतती है ज़िन्दगी ।