मौन को मुखर कीजिए

बस अब बहुत हो चुका,

अब मौन को मुखर कीजिए

कुछ तो बोलिए

न मुंह बन्द कीजिए।

संकेतों की भाषा

कोई समझता नहीं

बोलकर ही भाव दीजिए।

खामोशियां घुटती हैं कहीं

ज़रा ज़ोर से बोलकर

आवाज़ दीजिए।

जो मन न भाए

उसका

खुलकर विरोध कीजिए।

यह सोचकर

कि बुरा लगेगा किसी को

अपना मन मत उदास कीजिए।

बुरे को बुरा कहकर

स्पष्ट भाव दीजिए,

और यही सुनने की

हिम्मत भी

अपने अन्दर पैदा कीजिए।

चुप्पी को सब समझते हैं कमज़ोरी

चिल्लाकर जवाब दीजिए।

कलम की नोक तीखी कीजिए

शब्दों को आवाज़ कीजिए।

मौन को मुखर कीजिए।