मेरे बारे में क्या लिखेंगे लोग

अक्सर

अपने बारे में सोचती हूं

मेरे बारे में

क्या लिखेंगे लोग।

हंसना तो आता है मुझे

पर मेरी हंसी

कितनी खुशियां दे पाती है

किसी को,

यही सोच कर सोचती हूं,

कुछ ज्यादा अच्छा नहीं

मेरे बारे में लिखेंगे लोग।

ज़िन्दगी में उदासी तो

कभी भी किसी को सुहाती नहीं,

और मैं जल्दी मुरझा जाती हूं

पेड़ से गिरे पत्तों की तरह।

छोटी-छोटी बातों पर

बहक जाती हूं,

रूठ जाती हूं,

आंसूं तो पलकों पर रहते हैं,

तब

मेरे बारे में कहां से

कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।

सच बोलने की आदत है बुरी,

किसी को भी कह देती हूं

खोटी-खरी,

बेबात

किसी को मनाना मुझे आता नहीं

अकारण

किसी को भाव देना मुझे भाता नहीं,

फिर,

मेरे बारे में कहां से

कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।

अक्सर अपनी बात कह पाती नहीं

किसी की सुननी मुझे आती नहीं

मौसम-सा मन है,

कभी बसन्त-सा बहकता है,

पंछी-सा चहकता है,

कभी इतनी लम्बी झड़ी

कि सब तट-बन्ध टूटते है।

कभी वाणी में जलाती धूप से

शब्द आकार ले लेते हैं

कभी

शीत में-से जमे भाव

निःशब्द रह जाते हैं।

फिर कैसे कहूं,

कि मेरे बारे में

कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।