मानवता को मुंडेर पर रख

आस्था, विश्वास,श्रद्धा को हम निर्जीव पत्थरों पर लुटा रहे हैं

अधिकारों के नाम पर जाति-धर्म,आरक्षण का विष पिला रहे हैं

अपने ही घरों में विष-बेल बीज ली है,जानते ही नहीं हम

मानवता को मुंडेर पर रख,अपना घर फूंक ताली बजा रहे हैं