भूल-भुलैया की इक नगरी होती

भूल-भुलैया की इक नगरी होती

इसकी-उसकी बात न होती

सुबह-शाम कोई बात न होती

हर दिन नई मुलाकात तो होती

इसने ऐसा, उसने वैसा

ऐसे कैसे, वैसे कैसे

कोई न कहता।

रोज़ नई-नई बात तो होती

गिले-शिकवों की गली न होती,

चाहे राहें छोटी होतीं

या चौड़ी-चौड़ी होतीं

बस प्रेम-प्रीत की नगरी होती

इसकी-उसकी, किसकी कैसे

ऐसी कभी कोई बात न होती