भाईयों को भारी पड़ती थी मां।

भाईयों को भारी पड़ती थी मां।

पता नहीं क्यों

भाईयों से डरती थी मां।

मरने पर कौन देगा कंधा

बस यही सोचा करती थी मां।

जीते-जी रोटी दी

या कभी पिलाया पानी

बात होती तो टाल जाती थी मां।

जो कुछ है घर में

चाहे टूटा-फूटा या उखड़ा-बिखरा

सब भाइयों का है,

कहती थी मां।

बेटा-बेटा कहती फ़िरती थी

पर आस बस

बेटियों से ही करती थी मां।

 

राखी-टीके बोझ लगते थे

लगते थे नौटंकी

क्या रखा है इसमें

कहते थे भाई ।

क्या देगी, क्या लाई

बस यही पूछा करते थे भाई।

पर दुनिया कहती थी

बेचारे होते हैं वे भाई

जिनके सिर पर होता है

अविवाहित बहनों का बोझा

इसी कारण शादी करने

से डरती थी मैं।

मां-बाप की सेवा करना

लड़कियों का भी दायित्व होता है

यह बात समझाते थे भाई

लेकिन घर पर कोई अधिकार नहीं

ये भी बतलाते थे भाईA

एक दूर देश में चला गया

एक रहकर भी तो कहां रहा।

 

सोचा करती थी मैं अक्सर

क्या ऐसे ही होते हैं भाई।