बड़े मसले हैं रोटी के

बड़े मसले हैं रोटी के।

रोटी बनाने

और खाने से पहले

एक लम्बी प्रक्रिया से

गुज़रना पड़ता है

हम महिलाओं को।

इस जग में

कौन समझा है

हमारा दर्द।

बस थाली में रोटी देखते ही

टूट पड़ते हैं।

मिट्टी से लेकर

रसोई तक पहुंचते-पहुंचते

किसे कितना दर्द होता है

और कितना आनन्द मिलता है

कौन समझ पाता है।

जब बच्चा

रोटी का पहला कौर खाता है

तब मां का आनन्द

कौन समझ पाता है।

जब किसी की आंखों में

तृप्ति दिखती है

तब रोटी बनाने की

मानों कीमत मिल जाती है।

लेकिन बस

इतना ही समझ नहीं आया

मुझे आज तक

कि रोटी गोल ही क्यों।

ठीक है

दुनिया गोल, धरती गोल

सूरज-चंदा गोल,

नज़रें गोल,

जीवन का पहिया गोल

पता नहीं और कितने गोल।

तो भले-मानुष

रोटी चपटी ही खा लो।

वही स्वाद मिलेगा।