बेबात की बात

हुआ कुछ यूं कि हमारे घर का नल बिगड़ गया।

आप पूछ सकते हैं कि क्यों बिगड़ गया, कैसे बिगड़ गया, किसकी गलत संगति में पड़ गया जो बिगड़ गया। नैट पर क्या कोई ऐसी-वैसी साईट देख रहा था अथवा प्रतिबन्धित एप से जुड़ा था। आजकल नैट पर जुआ भी खूब खेला जा रहा है, क्या वहां कुछ ऐसा-वैसा कर बैठा।

पता नहीं आपका दिमाग कहां चलता है, भाई मेरे। मैं नल की बात कर रही हूं, उस नल की जिसे  नलका भी कहते हैं और सुना है अंग्रेज़ी में TAP कहते हैं। जिससे कभी-कभी सरकारी पानी आता है, मनमर्ज़ी से आता है, जब-तब आता है, जब मन हो तब आता है। उसका एक मीटर भी लगा होता है, जिसका बिल भी आता है। पानी कैसा आता है, क्यों आता है, कब आता है, बिल का उससे कोई लेना-देना नहीं। उसका नल बिगड़ गया।

आया अब समझ में, मैंने क्या कहा।

नल बिगड़ गया।

हमारा ज़माना था, पीतल के नल हुआ करते थे। बिगड़ते नहीं थे खराब हो जाते थे। बाज़ार से दस-बीस पैसे  का एक वाॅशर यानी रबड़ का काला छल्ला लाते थे। प्लास से नल खोलकर इस छल्ले को बदल लेते थे और नल ठीक।

अब इस नये ज़माने में नये, आधुनिक नल हैं। पीतल के नहीं, सीधे स्टील के। बड़े-बड़े, मोटे-मोटे। ऐसे ही प्लास जैसों  के हत्थे नहीं चढ़ने वाले, सीधे-सादे। जानकारों ने बताया कि नल ही बदला जायेगा, कोई छल्ला, रबड़ नहीं, बस नल। बाज़ार गये नल की दुकान पर और नल मांगा। दुकानदान ने कहा पुराना लाकर दिखाईये, साईज़ होता है। हो सकता है पूरा नल न बदलना पड़े, उसके अन्दर एक Spindle होता है शायद उसे ही बदलने से काम चल जाये। हमने सोचा, चलो बचे, दस-बीस पैसे तो नहीं, शायद दस-बीस रूपये में काम हो जायेगा। लेकिन हमारा नल तो प्लास के हत्थे चढ़ा ही नहीं था, खोलेगा कौन?

हमने दुकानदार से पूछा किन्तु नल खुलता कैसे है?

दुकानदार ने हमारे चेहरे की मासूमियत को परखा, बोला, प्लम्बर बुलाना पड़ेगा।

जी, वह कहां मिलेगा।

दुकानदार ने आवाज़ दी, लालचन्द, बाबूजी के साथ इनके घर जा और देख कौन-सा नल लगा है, नल बदलना पड़ेगा या Spindle बदलने से काम बन जायेगा।

प्लम्बर आया, नल खोला, बोला, यह तो पुराना है अब इसके Spindle नहीं आते, नल ही बदलना पड़ेगा।

ठीक है फिर नल ही बदल दीजिए, पानी बह रहा है कब से।

प्लम्बर ने पैसे मांगे।

कितने ?

हज़ार रूपये तो दे ही दीजिए, जितने का भी आयेगा। और पांच सौ मेरे होंगे।

मैं अचेत। अब पता नहीं कि यह मेरी गलती है कि मैं अभी भी 100 वर्ष पीछे जी रही हूं या ज़माना ही कुछ ज़्यादा आगे निकल गया है।

मैंने सचेत होकर ज़माने से जुड़ने का प्रयास किया, और पुराना नल?

कबाड़ी को दे दीजिएगा, पांच-सात रूपये मिल जायेंगे।

मैं कोमा में।