बेटी-बेटी अभियान

असमंसज में हूँ। कहानी लिखने लगी हूँ, मन की बात, संस्मरण, मन की भड़ास अथवा आलेख। पता नहीं। आपको जो लगे उस विधा या कैटैगरी में ले लीजिएगा।

कुछ बातें बहुत पुरानी हैं, शायद आठ-दस वर्ष, जब बेटा काॅलेज में पढ़ता था और कुछ नई।

मेरा बेटा ‘‘बेटी-बेटी’’ अभियान के बहुत विरुद्ध है। उसका कहना है कि आप लोग या मीडिया अथवा प्रचार लड़कियों को बहुत सिर चढ़ा रहा है। हम लड़कों ने कोई पाप किया है क्या? वह कहता है कि इसी कारण आजकल की लड़कियों का दिमाग बहुत चढ़ गया है और वे इसका बहुत फ़ायदा उठाती हैं।

मैंने कहा, उनके साथ अन्याय भी तो बहुत होता है।

क्या अन्याय होता है? वह फिर भड़का। वैसे तो हर जगह लड़की कहकर फ़ायदे उठाएंगी, अधिकार मांगेंगी और जब काम की बारी आयेगी तो हम तो लड़कियां हैं। वेतन बराबर चाहिए किन्तु काम हल्का। 

बहुत पुरानी बात है। एक दिन काॅलेज से लौटा और बहुत मज़े लेकर बताने लगा कि आज एक लड़की का स्कूटी का एक्सीडैंट हो गया। उसकी स्कूटी स्किड कर गई। और वो स्कूटी के साथ ही गिरी।

मैंने एकदम गुस्सा किया कि ऐसे कैसे बात कर रहे हो, उसकी तुम लोगों ने मदद नहीं की क्या?

उसका बड़ा स्पष्ट उत्तर था, नहीं की।

क्यों? मेरा पारा और चढ़ा।

हम लड़कियों की मदद नहीं करते।

मेरा पारा और ऊपर, ये क्या बात हुई? लड़कियों की तो ज़्यादा मदद करनी चाहिए।

वाह ! मां, क्यों लड़कियों की ज़्यादा मदद करनी चाहिए। वो तो आज किसी से कमज़ोर नहीं हैं। बराबरी की बात करती हैं, लेकिन बस में लड़कियों के लिए सीट रिज़र्व रहती है।

वो तो बेटा इसलिए कि लड़कियों को कोई परेशान न करे।

हांाााााााााााा, यही तो, इसीलिए तो हम लड़कियों की मदद नहीं करते, हम मदद करने के लिए बढ़ें और वो सोचे या लोग सोचें कि परेशान करने आये हैं।

मां, हम लड़कों को आज की दुनिया में बहुत सम्हलकर रहना पड़ता है। आप क्या जानो।

फिर कहने लगा, पता है आपको मां, पिछले दिनों आंकड़े जारी हुए थे। दहेज और रेप के 70 प्रतिशत मामले झूठे निकले थे।

मैंने कहा किन्तु 30 प्रतिशत तो सही थे, उनका क्या?

उसका सरल-सा उत्तर था, तीस प्रतिशत इसीलिए पिछड़ जाते हैं क्योंकि पुलिस, प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर 70 प्रतिशत का दबाव तो रहता ही है न।

फिर वह अपनी बात पर पुनः लौट आया। कहने लगा, हम लड़के लड़कियों से 10 फ़ीट की दूरी बनाकर चलते हैं। आजकल एक फ़ैशन ही हो गया है लड़कों को बुरा बोलने का, केवल बुरा नहीं चरित्रहीन, संस्कारहीन और आपकी हिन्दी में पता नहीं क्या-क्या कहते हैं, वो सब। उसे स्कूटर से उठाते समय गलती से भी हाथ लग जाता तो पता नहीं क्या आरोप लग जाते और आप मुझसे मिलने हवालात में आते।

मैंने समझाने का प्रयास किया कि बेटा ऐसा नहीं होता, तुम्हारी नीयत ठीक होगी तो कोई क्यों तुम पर यूं ही शक करेगा?

लेकिन वो मानने के लिए तैयार नहीं था। उसका कहना था कि आप आजकल का माहौल जानते ही नहीं हो। हम चार लड़के कहीं खड़े हों, यूं ही गप्पबाजी कर रहे हों, बस की प्रतीक्षा कर रहे हों, थोड़ा ऊँचा बोल जायें या हँस रहे हों, तो आस-पास के लोगों के चेहरे देखने वाले होते हैं। विशेषकर आपकी आयु के लोगों के। और कहीं लड़कियाँ हो आस-पास, तब तो मुँह पर अँगुली रखकर खड़े होना पड़ता है। हम लोगों की बातचीत या ऊँचा-ऊँचा हँसने का आजकल एक ही मतलब होता है कि हम लड़कियों को छेड़ रहे हैं। और लोग पीठ पीछे बोल भी देते हैं जो हमें सुनाई देता है कि आजकल तो इन लड़कों की आवारगी बहुत ही बढ़ गई है। पढ़ते-लिखते नहीं हैं, माहौल बिगाड़कर रखा है और न जाने क्या-क्या। और अन्त में मां-बाप और संस्कारों  पर आ जायेंगे।

अब तो वह अपने मन की पूरी भड़ास निकालने पर उतर आया।

स्कूटी तो चलाती हैं पर चलानी आती नहीं।

मैंने पूछा अगर उन्हें चलानी नहीं आती तो चलाती कैसे हैं?

अब मां देखो, गाड़ी चलाना अलग बात है और गाड़ी की जानकारी रखना अलग बात। अब चाबी घुमाकर चला तो लेती हैं लेकिन ज़रा सा रुक जाये तो इधर-उधर देखने लगती हैं मदद के लिए। सड़क के बीच में स्कूटी रुक जाये तो किनारे तो की नहीं जाती उनसे। फिर जितना रांग साईड, गलत कट ये लेती हैं, बस पूछो मत।

परसों की बात तो मैंने आपको बताई ही नहीं।

कोई पंगा तो नहीं कर आया, मैंने एकदम पूछ लिया।

लो बस, लग गया न आरोप मुझ पर बिना सुने ही।

परसों तेरा पेपर था न, छोड़कर तो नहीं आ गया था।

लो फिर आरोप, बात नहीं सुननी पूरी मेरी।

अच्छा-अच्छा अब नहीं बोलूंगी, बता क्या हुआ।

सुबह ट्रैफिक तो होता ही है, आपको पता ही है। मैं मध्य मार्ग पर बिल्कुल अपनी लेन में चल रहा था। पीछे से एक लड़की स्कूटी पर हार्न पर हार्न दिये जा रही थी। कभी बायें आती तो कभी दायें। दो-तीन कार वाले भी बहुत परेशान हो रहे थे। पता नहीं उससे स्कूटी सम्हल नहीं रही थी या वो पास लेना चाह रही थी। उसे मैंने और कार वाले ने रास्ता भी दिया पर आगे भी न निकले। हर बार लगे अब टकराई, अब टकराई। मैंने अपना स्कूटर साईड में लगाकर हाथ जोड़े, माता, तू जा। मेरा पेपर जाता है तो जाये, अगले साल दे लूंगा। तू निकल, पूरा मध्यमार्ग ले ले। पर मुझे परेशान न कर। और मां, जब तक वह  अगली लाईट्स क्रास नहीं कर गई मैं भी खड़ा रहा। माता तू जा, बार-बार मैंने हर स्कूटी वाली लड़की को यही कहा। मेरे पेपर की चिन्ता नहीं, अगले साल फिर आ जायेगा, बस जान नहीं देनी मुझे, हवालात नहीं जाना मुझे।