बांसुरी छोड़ो आंखें खोलो

बांसुरी छोड़ो, आंखें खोलो,

ज़रा मेरी सुनो।

कितने ही युगों में

नये से नये अवतार लेकर

तुमने

दुष्टों का संहार किया,

विश्व का कल्याण किया।

और अब इस युग में

राधा-संग

आंख मूंदकर निश्चिंत बैठे हो,

मानों सतयुग हो, द्वापर युग हो

या हो राम-राज्य।

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अथवा मैं यह मान लूं,

कि तुम

साहस छोड़ बैठे हो,

आंख खोलने का।

क्योंकि तुम्हारे प्रत्येक युग के दुष्ट

रूप बदलकर,

इस युग में संगठित होकर,

तुमसे पहले ही अवतरित हो चुके हैं,

नाम-ग्राम-पहचान सब बदल चुके हैं,

निडर।

क्योंकि वे जानते हैं,

तुम्हारे आयुध पुराने हो चुके हैं,

तुम्हारी सारी नीतियां,

बीते युगों की बात हो चुकी हैं,

और कोई अर्जुन, भीम नहीं हैं यहां।

अत: ज़रा संम्हलकर उठना।

वे राह देख रहे हैं तुम्हारी

दो-दो हाथ करने के लिए।