बहती धारा

दूर कहीं

अनजान नगर से

बहती धारा आती है

कब छलकी, कहां चली

नहीं हमें बताती है

पथ दुर्गम, राहें अनजानी

पथरीली राहों पर

कहीं रूकती

कहीं लहर-लहर लहराती है।

झुक-झुक कर देख रहे तरू

रूक-रूक कर कहां जाती है

कभी सूखी कभी नम धरा से

मानों पूछ रहे

कभी रौद्र रूप दिखलाती

लुप्‍त कभी क्‍यों हो जाती है।