बहकती हैं पत्तियों पर ओस की बूंदें

 

छू मत देना इन मोतियों को टूट न जायें कहीं।

आनन्द का आन्तरिक स्त्रोत हैं छूट न जाये कहीं।

जब बहकती देखती हूं इन पत्तियों पर ओस की बूंदे ,

बोलती हूं, ठहर-ठहर देखो, ये फूट न जाये कहीं ।