बस जूझना पड़ता है

मछलियां गहरे पानी में मिलती हैं

किसी मछुआरे से पूछना।

माणिक-मोती पाने के लिए भी

गहरे सागर में

उतरना पड़ता है,

किसी ज्ञानी से बूझना।

किश्तियां भी

मझधार में ही डूबती हैं

किसी नाविक से पूछना।

तल-अतल की गहराईयों में

छिपा है ज्ञान का अपरिमित भंडार,

किसी वेद-ध्यानी से पूछना।

पाताल लोक से

चंद्र-मणि पाने के लिए

कौन-सी राह जाती है,

किसी अध्यवसायी से पूछना।

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उपलब्धियों को पाने के लिए

गहरे पानी में 

उतरना ही पड़ता है।

जूझना पड़ता है,

सागर की लहरों से,

सहना पड़ता है

मझधार के वेग को,

और आकाश से पाताल

तक का सफ़र तय करना पड़ता है।

और इन कोशिशों के बीच

जीवन में विष मिलेगा

या अमृत,

यह कोई नहीं जानता।

बस जूझना पड़ता है।