बंजारों पर चित्राधारित रचना

किसी चित्रकार की

तूलिका से बिखरे

यह शोख रंग

चित्रित कर पाते हैं

बस, एक ठहरी-सी हंसी,

थोड़ी दिखती-सी खुशी

कुछ आराम

कुछ श्रृंगार, सौन्‍दर्य का आकर्षण

अधखिली रोशनी में

दमकता जीवन।

किन्‍तु, कहां देख पाती है

इससे आगे

बन्‍द आंखों में गहराती चिन्‍ताएं

भविष्‍य का धुंधलापन

अधखिली रोशनी में जीवन तलाशता

संघर्ष की रोटी

राहों में बिखरा जीव

हर दिन

किसी नये ठौर की तलाश में

यूं ही बीतता है जीवन ।