प्रेम की एक नवीन धारा

हां, प्रेम सच्चा रहे,

 

हां , प्रेम सच्चा रहे,

हर मुस्कुराहट में

हर आहट में

रूदन में या स्मित में

प्रेम की धारा बही

मन की शुष्क भूमि पर

प्रेम-रस की

एक नवीन छाया पड़ी।

पल-पल मानांे बोलता है

हर पल नवरस घोलता है

एक संगीत गूंजता है

हास की वाणी बोलता है

दूरियां सिमटने लगीं

आहटें मिटने लगीं

सबका मन

प्रेम की बोली बोलता है

दिन-रात का भान न रहा

दिन में भी

चंदा चांदनी बिखेरने लगा

टिमटिमाने लगे तारे

रवि रात में भी घाम देने लगा

इन पलों का एहसास

शब्दातीत होने लगा

बस इतना ही

हां, प्रेम सच्चा रहे

हां, प्रेम सच्चा लगे