पीछे से झांकती है दुनिया

कुछ तो घटा होगा

जो यह पत्थर उठे होंगे।

कुछ तो टूटा होगा

जो यह घुटने फूटे होंगे।

कुछ तो मन में गुबार होगा

जो यूं हाथ उठे होंगे।

फिर, कश्मीर हो या कन्याकुमारी

कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

वह कौन-सी बात है

जो शब्दों में नहीं ढाली जा सकी,

कलम ने हाथ खींच लिया
और हाथ में पत्थर थमा दिया।

अरे ! अबला-सबला-विमला-कमला

की बात मत करो,

मत करो बात लाज, ममता, नेह की।

एक आवरण में छिपे हैं भाव

कौन समझेगा ?

न यूं ही आरोप-प्रत्यारोप में उलझो।

कहीं, कुछ तो बिखरा होगा।

कुछ तो हुआ होगा ऐसा

कि चुप्पी साधे सब देख रहे हैं

न रोक रहे हैं, न टोक रहे हैं,

कि पीछे से झांकती है दुनिया

न रोकती है, न मदद करती है

न राह दिखाती है

तमाशबीन हैं सब।

कुछ शब्दों के, कुछ नयनों के।

क्यों ? क्यों ?