पाप-पुण्य के लेखे में फंसे

इहलोक-परलोक यहीं,स्वर्ग-नरकलोक यहीं,जीवन-मरण भी यहीं

ज़िन्दगी से पहले और बाद कौन जाने कोई लोक है भी या नहीं

पाप-पुण्य के लेखे में फंसे, गणनाएं करते रहे, मरते रहे हर दिन

कल के,काल के डर से,आज ही तो मर-मर कर जी रहे हैं हम यहीं