पलायन का स्वर भाता नहीं

अरे! क्यों छोड़ो भी

कोई बात हुई, कि छोड़ो भी

यह पलायन का स्वर मुझे  भाता नहीं।

मुझे इस तरह से बात करना आता नहीं।

कोई छेड़ गया, कोई बोल गया

कोई छू गया।

किसी की वाणाी से अपशब्द झरे,

कोई मेरा अधिकार मार गया,

किसी के शब्द-वाण झरे,

ढूंढकर मुहावरे पढ़े।

हरदम छोटेपन का एहसास कराते

कहीं दो वर्ष की बच्ची

अथवा अस्सी की वृद्धा

नहीं छोड़ी जी,

और आप कहते हैं

छोड़ो जी।

छोटी-छोटी बातों को

हम कह देते हैं छोड़ो जी

कब बन जाता

इस राई का पहाड़

यह भी तो देखो जी।

 

छोड़ो जी कहकर

हम देते हिम्मत उन लोगों को

जो नहीं मानते

कि गलत राहें छोड़ो जी।

इसलिए मैं तो मानूं

कि क्यों छोड़ो जी।

न जी न,

न छोड़ो जी।