पत्थरों के भीतर भी पिघलती है जिन्दगी

प्यार मनुहार धार-धार से संवरती है जिन्दगी

मन ही क्या पत्थरों के भीतर भी पिघलती है जिन्दगी

यूं तो  ठोकरे खा-खाकर भी जीवन संवर जाता है

यही तो भाव हैं कि सिर पर सूरज उगा लेती है जिन्दगी