पतझड़

हरे पत्ते अचानक

लाल-पीले होने लगते हैं।

नारंगी, भूरे,

और गाढ़े लाल रंग के।

हवाएं डालियों के साथ

मदमस्त खेलती हैं,

झुलाती हैं।

पत्ते आनन्द-मग्न

लहराते हैं अपने ही अंदाज़ में।

हवाओं के संग

उड़ते-फ़िरते, लहराते,

रंग बदलते,

छूटते सम्बन्ध डालियों से।

शुष्कता उन्हें धरा पर

ले आती है।

यहां भी खेलते हैं

हवाओं संग,

बच्चों की तरह उछलते-कूदते

उड़ते फिरते,

मानों छुपन-छुपाई खेलते।

लोग कहते हैं

पतझड़ आया।

 

लेकिन मुझे लगता है

यही जीवन है।

और डालियों पर

हरे पत्ते पुनः अंकुरण लेने लगते हैं।