नेह की चांदनी

स्मृतियों से निकलकर

सच बनने लगी हो।

मन में एक उमंग

भरने लगी हो।

गगन के चांद सी

आभा लेकर आई

जीवन में तुम्हारी मुस्कान,

तुम भाने लगी हो।

अतीत की

धुंधलाती तस्वीरें

रंगों में ढलने लगी हैं।

भूले प्रेम की तरंगे

स्वर-लहरियों में

गुनगुनाने लगी हैं।

नेह की चांदनी

भिगोने लगी है,

धरा-गगन

एक होने लगे हैं।

रंगों के भेद

मिटने लगे हैं।

गहराती रोशनियों में

आशाएं दमकने लगी हैं।