निर्माण हो या हो अवसान

उपवन में रूप ले रही

कलियों ने पहले से झूम रहे

पुष्पों की आभा देखी

और अपना सुन्दर भविष्य

देखकर मुस्कुरा दीं।

पुष्पों ने कलियों की

मुस्कान से आलोकित

उपवन को निहारा

और अपना पूर्व स्वरूप भानकर

मुदित हुए।

फिर धरा पर झरी पत्तियों में

अपने भविष्य की

आहट का अनुभव किया।

धरा से बने थे

धरा में जा मिलेंगे

सोच, खिलखिला दिये।

फिर स्वरूप लेंगे

मुस्कुराएंगे, मुदित होंगे,

फिर खिलखिलाएंगे।

निर्माण हो या हो अवसान की आहट

होना है तो होना है

रोना क्या खोना क्या

होना है तो होना है।

चलो, इसी बात पर मुस्कुरा दें ज़रा।