नासूर सी चुभती हैं बातें

काश मैं वह सब बोल पाती, कुछ सीमाओं को तोड़ पाती

नासूर सी चुभती हैं कितनी ही बातें, क्यों नहीं मैं रोक पाती

न शब्द मिलें, न आज़ादी, और न नैतिकता अनुमति देती है

पर्यावरण के शाब्दिक प्रदूषण का मैं खुलकर, कर विरोध  पाती