नारी बेचारी नेह की मारी

बस इतना पूछना है

कि क्या अब तुमसे बन्दूक

भी न सम्हल रही

जो मेरे हाथ दे दी!

कहते हो

नारी बेचारी

अबला, ममता, नेह की मारी

कोमल, प्यारी, बेटी बेचारी

घर-द्वार, चूल्हा-चौखट 

सब मेरे काम

और प्रकृति का उपहार

ममत्व !

मेरे दायित्व!!

कभी दुर्गा, कभी सीता कहते

कभी रणचण्डी, कभी लक्ष्मीबाई बताते

कभी जौहर करवाते

अब तो हर जगह

बस औरतों के ही काम गिनवाते

कुछ तो तुम भी कर लो

अब क्या तुमसे यह बन्दूक

भी न चल रही

जो मेरे हाथ थमा दी !!