नव वर्ष की प्रतीक्षा में

नव वर्ष की प्रतीक्षा में

कामना लिए कुछ नयेपन की

एक बदलाव, एक नये एहसास की,

हम एक पूरा साल

कैलेण्डर की और ताकते रहते हैं।

कैलेण्डर पर तारीखें बदलती हैं।

दिन, महीने बदलते हैं।

और हम पृष्‍ठ  पलटते रहते हैं

उलझे रहते हैं बेमतलब ही कुछ तारीखों-दिनों में।

चिह्नित करते हैं रंगों से

कुछ अच्छे दिनों की आस को।

और उस आस को लिए–लिए

बीत जाता है पूरा साल।

वे अच्छे दिन

टहलते हैं हमारे आस-पास,

जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर जाते हैं

बेमतलब उलझे

काल्पनिक आशंकाओं और चिन्ताओं में।

फिर चौंक कर कहते हैं

अरे ! एक साल और यूं ही बीत गया।

शायद बुरा-सा लगता है कहीं

कि लो, एक साल और बीत गया यूं ही

बस जताते नहीं हैं।

फिर पिछले पूरे साल को

मुट्ठी में समेटकर आगे बढ़ते हैं

फिर से एक नयेपन की

आशाओं-आकांक्षाओं के साथ।


बस एक पल का ही तो अन्तर है

इस नये और पुराने के बीच।

उस एक पल के अन्तर को भूलकर

एक पल के लिए

निरन्तरता में देखें

तो कुछ भी तो नहीं बदलता।

पता नहीं

गत वर्ष के समापन की खुशियां मनाते हैं

या आने वाले दिनों की आस को जगाते हैं

किन्तु वास्तविकता यह

कि हम चाहते ही नहीं

कि कभी साल दर साल बीतें।

बस प्रतीक्षा में रहते हैं

एक नयेपन की , एक परिवर्तन की,

कुछ नई चाहतों की

वह साल हो या कुछ और ।

हर साल, साल-दर-साल

पता नहीं हम

गत वर्ष के समापन की खुशियां मनाते हैं

या आने वाले दिनों की आस को जगाते हैं।

बस देखते रहते हें कैलेण्‍डर की ओर

दिन, महीने, तिथियां बदलती हैं

पृष्‍ठ पलटते हैं

और हम उलझे रहते हैं

बेमतलब कुछ दिनों तारीखों को

किन्तु वास्तविकता यह

कि हम चाहते ही नहीं

कि कभी साल दर साल बीतें।

बस प्रतीक्षा में रहते हैं

एक नयेपन की , एक परिवर्तन की,

कुछ नई चाहतों की

वह साल हो या कुछ और ।